आशा न छोड़ें
१ जीवन हमेशा आसान नहीं होता
हम सभी जीवन के सफ़र की शुरूआत अनेक सपनों, लक्ष्यों, महत्वाकांक्षाओं और आकांक्षाओं के साथ करते हैं। बड़े उत्साह के साथ, हम योजनाएँ बनाते हैं कि हम क्या करना चाहते हैं, हम कहाँ जाना चाहते हैं और हम जीवन में क्या बनना चाहते हैं। किन्तु साथ ही सफ़र के दौरान, यह निश्चित है कि हमें कुछ तूफानी मौसम का सामना करना पड़ेगा। जीवन हमेशा सरल नहीं होता। हम अक्सर चाहते हैं कि जीवन कहानी की किताब के समान सरल हो, किन्तु हमेशा ऐसा नहीं होता! अप्रत्याशित मुश्किलें और परिस्थितियाँ रास्ते में आती हैं। ऐसे ही समयों में हमारे लक्ष्य और सपने फिसलते प्रतीत होते हैं। कभी-कभी हम अपने आप को ऐसी परिस्थितियों के मध्य में पाते हैं जो लगभग निराशाजनक प्रतीत होती हैं। हम आशा खोते हैं। हम हताश होकर हार मानने लगते हैं। हम सोचने लगते हैं, “मैं वह कभी पूरा नहीं कर पाऊँगा” या “मैं कभी अपने लक्ष्य तक नहीं पहुँच पाऊँगा।” हम अपने आप को लक्ष्यों तक पहुँचने में असहाय समझकर निराश हो जाते हैं।
कभी-कभी हमारा जीवन अप्रत्याशित मोड़ ले लेता है, और ऐसी परिस्थितियाँ सामने आती हैं जिनके लिए हम पूर्णतः तैयार नहीं होते। हम अपने आपको रास्ते के अंत में पाते हैं, जहाँ से पलटने का कोई रास्ता दिखाई नहीं देता। हो सकता है, आप में से कुछ लोग असहाय परिस्थितियों के मध्य हों एवं यह पुस्तक पढ़ रहे हों। यह आपकी नौकरी, करियर, शिक्षा, घर, विवाह, या परिवार, कुछ भी हो सकता है। जीवन में कई बातें गलत हो सकती हैं। परंतु मैं आपको प्रोत्साहन देना चाहता हूँ कि बाइबल का परमेश्वर मृतकों को जीवन देने में विशेषता रखता है—उन स्थितियों और परिस्थितियों को जो मृत और निराशाजनक प्रतीत होती हैं। वह निराशाजनक परिस्थितियों को बदलने में महारत रखता है। आमेन! जब वह आपके पक्ष में है, तो आप आशा न रहते हुए भी आशा रख सकते हैं। जब कुछ निराशाजनक प्रतीत होता है, तब आप जयवंत होकर बाहर निकल सकते हैं। यह पुस्तक प्रोत्साहन के सरल शब्दों को ले आती है और हमें प्रोत्साहन देती है कि हम आशा न छोड़ें।
२ आशा—हमारे मसीही जीवन का एक अनिवार्य भाग
आशा रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है। “आशा” से हमारा मतलब है प्रत्याशा, अपेक्षा, ऐसा कुछ जिसका हम इंतजार करें, इच्छा, स्वप्न या आकांक्षा। मसीही जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक है आशा। बाइबल तीन बातों का उल्लेख करती है जो हमारे मसीही चालचलन में महत्वपूर्ण हैं; उनमें से एक है आशा।
1 कुरिन्थियों 13:13
पर अब विश्वास, आशा, प्रेम ये तीनों स्थायी हैं, पर इन में सबसे बड़ा प्रेम है।
विश्वासियों के रूप में, हम कई बातों की आशा करते हैं जो अभी आने वाली हैं।
अंत जीवन की आशा
तीतुस 1:2
उस अनंत जीवन की आशा पर, जिसकी प्रतिज्ञा परमेश्वर ने, जो झूठ बोल नहीं सकता, सनातन से की है।
हम अनंत जीवन की आशा रखते हैं। जब तक अनंत जीवन वह है जो हमारी आत्मा में है, और वह भी जिसकी हम प्रतीक्षा करते हैं।
महिमा की आशा
कुलुस्सियों 1:27
जिन पर परमेश्वर ने प्रकट करना चाहा कि अन्यजातियों में उस भेद की महिमा का मूल्य क्या है, और वह यह है कि मसीह जो महिमा की आशा है तुम में रहता है।
हमारे लिए मसीह हमारी महिमा की आशा है। वह आने वाले विश्व में जीवन के लिए हमारी आशा है, एक ऐसा विश्व जो वर्तमान में है उससे कहीं श्रेष्ठ है। हम स्वर्ग में परमेश्वर की उपस्थिति में उसके साथ अपने समय का इंतजार कर रहे हैं।
उद्धार की आशा
1 थिस्सलुनीकियों 5:8
पर हम जो दिन के हैं, विश्वास और प्रेम का झिलम पहिनकर और उद्धार की आशा का टोप पहिनकर सावधान रहें।
जब उद्धार की शुरुआत होती है, वहाँ हमारे उद्धार का भाग वह भी है जिसकी हम इंतजार करते हैं।
मसीह की वापसी की आशा
तीतुस 2:13
और उस धन्य आशा की अर्थात अपने महान परमेश्वर और उद्धारकर्ता यीशु मसीह की महिमा के प्रकट होने की बाट जोहते रहें।
पुनरुत्थान की आशा
प्रेरितों के काम 24:15
और परमेश्वर से आशा रखता हूँ जो वे आप भी रखते हैं, कि धर्मी और अधर्मी दोनों का जी उठना होगा।
३ आशा का महत्व
हमारे प्रतिदिन के जीवन में आशा रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है। हमें निराशा के मध्य भी आशा से परिपूर्ण व्यक्ति बनना है। निरंतर आशा बनाए रखना क्यों महत्वपूर्ण है इसके कई कारण हैं।
जब आशा विलंबित होती है, तो हृदय शिथिल हो जाता है
नीतिवचन 13:12
जब आशा पूरी होने में विलंब होता है, तो मन शिथिल होता है, परन्तु जब लालसा पूरी होती है, तब जीवन का वृक्ष लगता है।
हम एक विशेष कार्य के एक निश्चित वर्ष में पूर्ण होने की अपेक्षा रखते हैं किन्तु शायद वर्ष के अंत तक भी वह नहीं हो पाता। हम स्वयं से कहते हैं कि वह शायद अगले तक वर्ष पूर्ण हो, किन्तु फिर भी ऐसा नहीं होता। जैसे ही आशा की हुई बात में विलंब होता है, हमारा अंतर्मन पूरी तरह आशा खो बैठता है और हम पूरी तरह निराश हो जाते हैं।
दूसरी ओर, जब हमारी आशा का विषय आता है, यह जीवनदायी वृक्ष के समान होता है। वह हमें स्फूर्ति और ताजगी देता है। हमें ताजगी और नवजीवन का अनुभव होता है। हमारे विश्वास में वृद्धि होती है। हम प्रेरित होते हैं और आगे बढ़ते हैं।
आशा प्राण का एक सहारा (लंगर) है
इब्रानियों 6:19
वह आशा हमारे प्राण के लिए ऐसा लंगर है, ...
आशा हमारे प्राण के लिए एक लंगर है। “प्राण” शब्द में, इच्छा और भावनाओं को सम्मिलित किया गया है। प्राण के सम्बन्ध में आशा की भूमिका को समझाने के लिए यहाँ जहाज में लंगर डालने का उदाहरण दिया गया है। जब समुद्र में लंगर डाला जाता है, तब वह तूफान के मध्य में स्थिरता ले आता है। बाइबल कहती है कि आशा हमारे प्राण के लिए एक लंगर है।
इसका अर्थ यह है कि यदि मेरे पास आशा नहीं है, तो मेरी आत्मा—मेरी इच्छा, भावनाएँ और बुद्धि—में अशांति के समय स्थिरता या शांति नहीं होगी। जब लोग पूरी तरह से आशा खो बैठते हैं, तब जीवन के तूफान प्रबल प्रतीत होकर हमें आगे बढ़ने नहीं देते हैं। वे निराश होकर सरलता से हार मान लेते हैं। वे सोचते हैं कि क्या जीने का कोई कारण है। “कोई मेरी परवाह नहीं करता,” “सब कुछ गलत है” और “वह कभी ठीक नहीं हो सकता” ये सारे निराशाजनक विचार, हमारे हृदय में उत्पन्न होते हैं। इस अवस्था में, कई लोग आत्महत्या करने का भी विचार करते हैं। अतः कठिन परिस्थितियों में भी आशा न खोना महत्वपूर्ण है। आशा हमारे प्राण का लंगर है।
आशा विश्वास से अग्रगामी है
इब्रानियों 11:1
अब विश्वास आशा की हुई वस्तुओं का निश्चय, और अदेखी वस्तुओं का प्रमाण है।
आशा महत्वपूर्ण है क्योंकि विश्वास आशा पर निर्भर होता है। आशा विश्वास से पहले आती है। विश्वास के बल तभी रख सकते हैं, जब हमें आशा होती है। उस व्यक्ति के बारे में सोचें जिसे जानलेवा बीमारी है और डॉक्टरों ने कहा है कि उसकी सहायता के लिए चिकित्सा विज्ञान कुछ नहीं कर सकता और उसके जीने के लिए केवल कुछ ही दिन बचे हैं। संभवतः अधिकांश लोग ऐसी परिस्थिति में सारी आशा छोड़ देते हैं।
जब व्यक्ति आशा त्याग देता है, तब विश्वास भी कार्य नहीं कर सकता क्योंकि “विश्वास आशा की हुई बातों की वास्तविकता है।” जब व्यक्ति स्वस्थ होने की आशा ही नहीं करता, तब परमेश्वर की ओर से स्वास्थ्य (चँगाई) प्राप्ति का विश्वास होना अत्यंत कठिन होता है। आशा परमेश्वर में विश्वास रखने हेतु एक आवश्यक शर्त है।
४ परमेश्वर जो निराशाजनक परिस्थितियों को पलट देता है
हमें यह समझना आवश्यक है कि, हम चाहे जिस स्थिति में भी हों, चाहे कितनी भी निराशाजनक हों, परमेश्वर निराशाजनक स्थितियों को बदलने की विशेषता रखता है। आमेन! शायद आपकी निराशाजनक परिस्थिति आपका विवाह, नौकरी, बच्चे, पैसा, करियर, शिक्षा या कुछ और हो, चाहे जो भी हो इस वास्तविकता पर अपना ध्यान केंद्रित करें कि हम ऐसे परमेश्वर की सेवा करते हैं जो निराशाजनक परिस्थितियों को बदल देता है। अतः हमें आशा नहीं छोड़नी चाहिए। आइए हम बाइबल के कुछ परिचित उदाहरणों को देखें जहां परमेश्वर ने निराशाजनक परिस्थितियों को बदल दिया था।
निधकि स्त्री
उस स्त्री के बारे में विचार करें जिसका पति उसे दो बेटों और भारी कर्ज को छोड़कर मर गया (2 राजा 4:1-7)। लेनदार आकर दोनों बच्चों को उठाकर ले जाने की धमकी देकर पैसा माँगने लगे। इस स्त्री की परिस्थिति बिल्कुल निराशाजनक थी! वह परमेश्वर के दास एलीशा के पास गई, और उसने उनके सामने अपनी स्थिति का वर्णन कर सहायता माँगी।
उसने पूछा कि उसके पास घर में क्या है। उसने उत्तर दिया कि उसके पास सिर्फ एक तेल का बर्तन है। एलीशा ने उससे कहा कि वह जाकर जितने संभव हो सके उतने बर्तन इकट्ठा करे और उसके पास जो तेल है उसे प्रत्येक बर्तनों में उंडेलती जाए। चमत्कारी रूप से, तेल बढ़ गया और सारे बर्तन तेल से भर गए। एलीशा ने फिर उससे कहा कि वह जाकर तेल बेचकर, अपना कर्ज चुका और नई शुरुआत करे। परमेश्वर ने आशारहित परिस्थिति को आश्चर्यजनक रूप से बदल दिया और इस स्त्री की आवश्यकताओं को पूर्ण किया।
विवाह भोज में चमत्कार
विवाह भोज में मेजबान का दाखरस कम पड़ गया—एक सामान्य से अभाव की स्थिति, फिर भी निराश करने वाली परिस्थिति से कम नहीं। जब यह सोच रहे थे कि क्या करें, तब यीशु की माता मरियम ने विवाह भोज के सेवकों से कहा कि यीशु जो कुछ कहे वही वे करें। यीशु ने उन्हें मटकों को पानी से भरने के लिए कहा और उसे निकालकर मेहमानों को देने के लिए कहा। पानी अलौकिक रूप से दाखरस में बदल गया और विवाह भोज के स्थान पर हर किसी ने भरपूर दाखरस का आनंद लिया (यूहन्ना 2:1-11)। चमत्कारी प्रावधान का अद्भुत उदाहरण! परमेश्वर की सलाह को सुनकर जो कुछ कहता है उसे करना निराशाजनक परिस्थितियों को बदल सकता है।
निराशाजनक रात्री के बाद सुबह
लूका 5 में प्रभु यीशु द्वारा किए गए एक व्यावसायिक चमत्कार का वर्णन दिया गया जिसे हमारे लिए शिक्षाप्रद बनाया गया है। पतरस अपने “व्यापार में साझेदारों”—याकूब, यूहन्ना, और अन्य—के साथ मछली पकड़ने का व्यापार करता था। वे मछुआरे थे। एक बार, उन्होंने पूरी रात मछली पकड़ने में मेहनत की किन्तु कुछ भी नहीं पकड़ पाए। अगली सुबह, जब वे लौटे, तो प्रभु यीशु से उनकी भेंट हुई। उन्होंने उनसे उस भीड़ के प्रचार के लिए उनकी नाव का उपयोग करने का अनुरोध किया जो उन्हें सुनने के लिए एकत्रित हुई थी।
वचन के प्रचार के बाद, प्रभु ने पतरस से कहा कि वह फिर से एक बार समुद्र में जाकर मछली पकड़ने के लिए अपना जाल डाले। पतरस ने उत्तर दिया, “हे स्वामी, हम ने सारी रात मेहनत की और कुछ न पकड़ा; तौभी तेरे कहने से जाल डालूँगा” (लूका 5:5)।
पतरस जानता था कि उसे उसके प्रयासों द्वारा कुछ प्राप्त नहीं हुआ। और फिर भी, वह वही करने के लिए तैयार था जो यीशु ने उससे करने के लिए कहा। प्रभु के एक शब्द ने उस निराशाजनक स्थिति को बदल दिया। प्रभु ने जो कहा उसके प्रति पतरस की अन्तर्निहित आज्ञाकारिता उसके लिए एक “आध्यात्मिक चमत्कार” बनकर आई।
५ निराशाजनक परिस्थितियों में आशा रखने का आधार
निराशाजनक परिस्थिति में आशा रखने का आधार क्या है? क्या यह एक अनुभाव मात्र है? क्या यह भौतिक परिस्थिति के लिए आपके हृदय का प्रश्न है? क्या यह सकारात्मक होने की बात है—सकारात्मक होने और सकारात्मक बने रहने के प्रयास का मानवतावादी दृष्टिकोण? अत्यंत कठिन परिस्थितियों में भी हम आशा क्यों रख सकते हैं इसका साधारण सा कारण परमेश्वर और उसके वचन हैं।
अब्राहम का विश्वास और आशा
रोमियों 4:18
उसने निराशा में भी आशा रखकर विश्वास किया, इसलिये कि उस वचन के अनुसार कि “तेरा वंश ऐसा होगा,” वह बहुत सी जातियों का पिता हो।
अब्राहम ने विश्वास न करने का कारण होते हुए भी परमेश्वर ने जो वचन दिया था, उस पर विश्वास किया। परिस्थिति निराशाजनक होने पर भी, उसने विश्वास किया। क्यों? क्योंकि परमेश्वर ने कहा था! उसने “जो कहा गया उसके अनुसार” इसे अपनी आशा का आधार बनाया। परमेश्वर ने कहा था, और परिस्थिति निराशाजनक होने पर भी परमेश्वर ने कहा था। फिर भी अब्राहम ने सारी आशा के विपरीत विश्वास का चुनाव किया।
परमेश्वर और उसके वचन हमारी आशा का आधार हैं
भजन संहिता 38:15
परन्तु हे यहोवा, मैं ने तुझ ही पर अपनी आशा लगाई है; हे प्रभु, मेरे परमेश्वर, तू ही उत्तर देगा।
भजन संहिता 130:5
मैं यहोवा की बाट जोहता हूँ, मैं जी से उसकी बाट जोहता हूँ, और मेरी आशा उसके वचन पर है।
रोमियों 15:4
जो बातें पहले से लिखी गईं, वे हमारी ही शिक्षा के लिये लिखी गई हैं कि हम धीरज और पवित्रशास्त्र के प्रोत्साहन द्वारा आशा रखें।
परमेश्वर ही हमारी आशा का कारण, स्रोत और बल है। उसका वचन हमारी आशा का आधार बन जाता है। पवित्रशास्त्र के वचनों के द्वारा हमारे हृदय में धैर्य और आश्वासन उत्पन्न होता है, और हम आशा बनाए रख सकते हैं।
भविष्य के लिए आशा
अब तक हमने जो कुछ भी पढ़ा है उन सारी बातों का व्यावहारिक पक्ष देखें। आप में से कुछ लोग जो इसे पढ़ रहे हैं, वे शायद कहें, “मेरे पास भविष्य के लिए कोई आशा नहीं” या “मुझे नहीं लगता कि मैं ज्यादा आगे बढ़ पाऊँगा। मेरे जीवन में ज्यादा कुछ नहीं होने वाला।” मैं चाहता हूँ आप इस बात को जानें कि परमेश्वर और उसके वचन के कारण, हम भविष्य के लिए आशा रख सकते हैं। उसका वचन कहता है:
1 कुरिन्थियों 2:9
जैसा लिखा है, “जो बातें आँख ने नहीं देखीं और कान ने नहीं सुनीं, और जो बातें मनुष्य के चित्त में नहीं चढ़ीं, वे ही हैं जो परमेश्वर ने अपने प्रेम रखनेवालों के लिये तैयार की हैं।”
यिर्मयाह 29:11
“क्योंकि यहोवा की यह वाणी है, कि जो कल्पनाएँ मैं तुम्हारे विषय करता हूँ उन्हें मैं जानता हूँ, वे हानि की नहीं, वरन् कुशल ही की हैं, और अन्त में तुम्हारी आशा पूरी करूँगा।”
वचन—हमारी आशा का आधार है। अतः हम अच्छे भविष्य की आशा रख सकते हैं। हमारी वर्तमान परिस्थिति हमारे अन्तिम गन्तव्य की निश्चितता नहीं है। हमें आशा है कि हमारा भविष्य उन प्रतिज्ञाओं के कारण दृढ़, सफल और सुरक्षित है, जो उसने अपने वचन में की हैं। हम अपनी वर्तमान परिस्थितियों को हमें नीचे गिराने का मौका नहीं देंगे।
६ निराशाजनक परिस्थितियों के मध्य मैं क्या करता हूँ?
जब आप निराशाजनक परिस्थिति के मध्य होते हैं, तब आप क्या कर सकते हैं जिससे परमेश्वर उसे पलट सके? हमने अब्राहम के जीवन से क्या शिक्षा ली है? उसने ऐसा क्या किया जिससे परमेश्वर को निराशाजनक परिस्थिति को पलटने का मौका मिला? बाइबल कहती है कि अब्राहम ने निराशा में भी आशा के विपरीत विश्वास किया, कि, जिसके बारे में वचन दिया गया था वह उसके अनुसार होगा (रोमियों 4:18)। क्या आप विश्वास करेंगे कि जो कुछ परमेश्वर ने कहा है वह पूरा होगा?
आशा के विपरीत विश्वास करें
इस आशा के साथ विश्वास करें कि परमेश्वर ने जो कहा है आप उसके अनुसार बन जाएँगे। परमेश्वर और उसका वचन एक हैं। उसके वचन में विश्वास परमेश्वर में विश्वास है। आपको आशा के विरुद्ध विश्वास करना है। अतः चाहे सब कुछ निराशाजनक प्रतीत हो, आपको यह विश्वास करना है कि जैसा बताने का परमेश्वर ने वचन दिया है आप वैसे ही बनेंगे। आशा न खोएँ।
परिस्थिति की निराशा द्वारा अपने विश्वास को कम न होने दें
रोमियों 4:19
वह जो एक सौ वर्ष का था, अपने मरे हुए से शरीर और सारा के गर्भ की मरी हुई दशा जानकर भी विश्वास में निर्बल न हुआ।
अब्राहम ने अपने विश्वास को कमजोर होने की अनुमति नहीं दी क्योंकि उसने अपने शरीर की अवस्था और उसके आसपास की परिस्थितियों द्वारा अपने विश्वास को कम नहीं होने दिया। किसी भी परिस्थिति की निराशा आपके विश्वास को असहाय या कमजोर न कर पाए। अपने आसपास देखकर यह न कहें, “यह सुधार से परे है।”
लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आप अपनी परिस्थितियों को अस्वीकार करें। बल्कि, आपकी परिस्थितियों की वास्तविकता आपके विश्वास को कमजोर न कर पाए। इसके बजाय, आपको अपनी कल्पना के “चित्र फलक” पर आपको दिए गए वचन अनुसार परिणाम का “रंग” भरना है और चित्र बनाना है। उदाहरण के तौर पर, अपने आपको पूर्ण रूप से स्वस्थ देखें, जीवन में अपने आपको सफल व्यक्ति के रूप में देखें, अपने विवाह को सफल और प्रतिष्ठित देखें, अपनी संतान को परमेश्वर की सेवा करता हुआ और उसके मार्गों पर चलता हुआ देखें। ऐसे चित्र में परमेश्वर के वचन के आधार पर रंग भरें और उसे हमेशा देखें!
दृढ़ संकल्प और सहिष्णुता का प्रदर्शन करें
रोमियों 4:20
और न अविश्वासी होकर परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर सन्देह किया, पर विश्वास में दृढ़ होकर परमेश्वर की महिमा की।
अब्राहम ने अविश्वास में नहीं लड़खड़ाया। उसने दृढ़ संकल्प और सहिष्णुता का प्रदर्शन किया। आशा के साथ-साथ दृढ़ निश्चय और सहिष्णुता का होना आवश्यक है।
रोमियों 8:25
परन्तु जो वस्तु को हम नहीं देखते, यदि उसकी आशा रखते हैं, तो धीरज से उसकी बाट जोहते हैं।
जब हमारे पास सच्ची आशा होती है, तब शांति, निश्चयता, और आत्म-नियंत्रण का बोध होता है। आप जानते हैं कि परमेश्वर ने जो कहा है वह होगा। आप परेशान, विचलित, और व्याकुल होकर कुछ भी पाने के लिए हर एक को मार्ग से हटाने का प्रयास नहीं करेंगे। बल्कि, आप शांत रहते हैं क्योंकि आप जानते हैं कि जिस पर आपको विश्वास है वह पूर्ण होगा।
अपनी प्रसन्नता बनाए रखें; परमेश्वर की स्तुति करें
अब्राहम ने परमेश्वर की महिमा की। जब आपके पास आशा होती है, तब आपके पास प्रसन्नता होती है। क्योंकि वचन जो कहता है उसकी आपको आशा है, आप उल्लसित होते हैं। मसीही होने के नाते, हम आशा में प्रसन्न होते हैं।
रोमियों 12:12
आशा में आनन्दित रहो; क्लेश में स्थिर रहो; प्रार्थना में नित्य लगे रहो।
हम आशा से परिपूर्ण हो सकते हैं और आशा का परमेश्वर हमें प्रसन्नता और शांति से भर देता है। जब हम विश्वास करते हैं तो हमारे जीवन में आनंद और शांति आती है। कभी-कभी, प्रतीक्षा लंबी होने पर लोग निराश हो जाते हैं। उन्हें आशा के चित्र को अपने पास रखना आवश्यक है। वर्तमान परिस्थितियों में चिड़चिड़ाने देने के बजाय, आशा के चित्र को संभाल कर रखें।
७ क्या आप उस परमेश्वर को जानते हैं जो आपसे प्रेम करता है?
दो हजार साल पहले, परमेश्वर इस संसार में मनुष्य बनकर आया। उसका नाम यीशु है। उसने पूर्ण रूप से निष्पाप जीवन बिताया। यीशु देहधारी परमेश्वर था, इसलिए जो कुछ उसने कहा और किया, उसके द्वारा उसने परमेश्वर को हम पर प्रकट किया। जिन वचनों को उसने कहा, वे परमेश्वर के वचन थे। जिन कामों को उसने किया, परमेश्वर के काम थे।
यीशु का अद्भुत कार्य
यीशु ने इस पृथ्वी पर कई सामर्थ्य के काम किए। उसने बीमारों को और पीड़ितों को चंगा किया। उसने अंधों की आंखें खोलीं, बहरों के कान खोले, लंगड़े चलने लगे। उसने हर प्रकार के रोगों और बीमारियों को चंगा किया। उसने आश्चर्यजनक रूप से कुछ ही रोटियां बहुगुणित कर भूखों को खिलाया, आंधी को थामा, और कई आश्चर्यमय काम किए। ये सारे कार्य हमें दिखाते हैं कि यीशु अच्छा परमेश्वर है, जो चाहता है कि उसके लोग भले, चंगे, स्वस्थ और खुश रहें। परमेश्वर लोगों की ज़रूरतों को पूरा करना चाहता है।
परमेश्वर का प्रेम और उद्धार
फिर परमेश्वर ने क्यों मनुष्य बनने का और हमारे संसार में आने का निर्णय लिया? यीशु क्यों आया? हम सबने पाप किया है और ऐसे कामों को किया है जो हमें उत्पन्न करने वाले परमेश्वर के सम्मुख अस्वीकार्य हैं। पाप का परिणाम है। पाप परमेश्वर और हमारे बीच एक ऊंची दीवार है जिसे हम लांघ नहीं सकते। पाप हमें परमेश्वर से अलग करता है।
लेकिन, सुसमाचार यह है कि हम पाप से मुक्ति पाकर परमेश्वर से फिर मेल कर सकते हैं। बाइबल कहती है, "क्योंकि पाप की मजदूरी तो मृत्यु है, परन्तु परमेश्वर का वरदान हमारे प्रभु मसीह यीशु में अनन्त जीवन है" (रोमियों 6:23)। यीशु ने सम्पूर्ण जगत के पापों का दंड सहा, वह क्रूस पर मर गया। फिर तीसरे दिन वह जी उठा, और उसने कई लोगों को खुद को जीवित दिखाया और वह स्वर्ग पर चढ़ गया।
प्रभु यीशु पर विश्वास करने का आह्वान
"कि यदि तू अपने मुंह से यीशु को प्रभु जानकर अंगीकार करे और अपने मन से विश्वास करे कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया, तो तू निश्चित उद्धार पाएगा" (रोमियों 10:9)।
यदि आप प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करेंगे, तो आप भी पापों की क्षमा और शुद्धता पा सकते हैं। प्रभु यीशु मसीह में और जो कुछ उसने आपके लिए क्रूस पर किया, उस पर विश्वास करने हेतु निम्न प्रार्थना आपके लिए सहायक हो सकती है। यह प्रार्थना मात्र मार्गदर्शन के लिए है। आप अपने शब्दों में भी प्रार्थना कर सकते हैं।
प्रार्थना
“प्रिय प्रभु यीशु, जो कुछ आपने क्रूस पर किया उसे मैंने आज समझा है। आप मेरे लिए मर गए, आपने मेरे पापों का दंड सहा। बाइबल कहती है कि जो कोई आप पर विश्वास करेगा, उसे उसके पापों की क्षमा मिलेगी। आज, मैं आपमें विश्वास करने का और क्रूस पर मेरे लिए मरकर और मृतकों में से जी उठकर जो कुछ आपने मेरे लिए किया उसे ग्रहण करने का निर्णय लेता हूँ। धन्यवाद यीशु। आमीन।”